Tuesday, May 22, 2018

बकलम खुद मंटो

(तस्वीर गूगल के सौजन्य से)

मंटो के विषय में अब तक बहुत कुछ लिखा और कहा जा चुका है. उसके पक्ष में कम, और विपक्ष में ज़्यादा. ये विवरण अगर दृष्टिगत रखे जाएं तो कोई बुद्धिमान व्यक्ति मंटो के विषय में कोई सही राय कायम नहीं कर सकता.
मैं यह लेख लिखने बैठा हूँ और समझता हूँ कि मंटो के विषय में अपने विचार व्यक्त करना बड़ा कठिन काम है. लेकिन एक दृष्टि से आसान भी है. इसलिए मुझे मंटो के निकट रहने का सौभाग्य रहा है और सच पूछिए तो मैं मंटो का सहजन्मा हूँ.

अब तक इस व्यक्ति के विषय में जो लिखा गया है मुझे उस पर कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन मैं इतना समझता हूँ कि जो कुछ इन लेखों में बताया गया है, वह वास्तविकता से परे है. कुछ इसे शैतान कहते हैं, कुछ गंजा फरिश्ता. जरा ठहरिए, मैं देख लूं, कहीं वह कम्बख़्त सुन तो नहीं रहा. कहीं-कहीं, ठीक है. मुझे याद आ रहा है कि यह वह वक्त है जब वह पिया करता है. उसको शाम 6 बजे कड़वा शरबत पीने की आदत है.
हम इकट्ठे पैदा हुए और ख़याल है कि इकट्ठे ही मरेंगे, लेकिन यह भी हो सकता है कि सआदत हसन मर जाए और मंटो न मरे और हमेशा मुझे यह डर बहुत दुख देता है. इसीलिए मैंने उसके साथ अपनी दोस्ती निभाने में कोई कसर नहीं उठा रखी. अगर वह जीवित रहा और मैं मर गया तो ऐसा होगा कि अंडे का खोल तो बचा हुआ है और उसके अंदर की जर्दी और सफेदी लुप्त हो गई.
अब मैं अधिक भूमिका में नहीं जाना चाहता. आपसे साफ़ कहे देता हूँ कि मंटो ऐसा वन-टू आदमी मैंने अपनी जिंदगी में कभी नहीं देखा. जिसे यदि जमा किया जाए तो वह तीन बन जाए. त्रिकोण के विषय में उसका ज्ञान काफी है, लेकिन मैं जानता हूँ कि अभी इसकी ज़रूरत नहीं हुई. ये संकेत ऐसे हैं कि जिन्हें केवल सुविज्ञ ही समझ सकते हैं.
यूँ तो मंटो को मैं उसके जन्म से ही जानता हूँ- हम दोनों ने इकट्ठे एक ही समय 11 मई, 1912 को जन्म लिया-किंतु उसने सदा यह कोशिश की कि स्वयं को कछुए की तरह से रखे जो एक बार अपना सिर और गर्दन भीतर छुपा ले तो आप लाख ढूंढते रहें, इसका पता नहीं मिले. लेकिन मैं भी आखिर उसका हूँ. मैंने उसकी प्रत्येक गतिविधि को जान ही लिया.
लीजिए, अब मैं आपको बताता हूँ कि यह वैशाखनंदन कहानीकार कैसे बना? लेखक रचनाकार बड़े लम्बे चौड़े लेख लिखते हैं. अपने व्यक्तित्व का प्रमाण देते हैं. शोपेनहाबर, फ्रायड, हीगल, नेत्से, मार्क्स का उल्लेख करते हैं, मगर वास्तविकता से कोसों दूर रहते हैं.
उर्दू में फ़ेल
अब मैं इसके स्कूल के जीवन की ओर आता हूँ. वह बहुत बुद्धिमान बालक था और अत्यंत नटखट. उस समय उसका कद अधिक से अधिक 3 फुट 6 इंच होगा. वह अपने पिता की आखिरी संतान था. उसे अपने माँ-बाप की मुहब्बत तो प्राप्त थी, लेकिन उसके तीन बड़े भाई, जो उम्र में उससे बहुत बड़े थे और विलायत में शिक्षा पा रहे थे, उनसे उसको कभी भेंट करने का अवसर ही नहीं मिला था, इसलिए कि वे सौतेले थे. वह चाहता था कि वे उससे मिलें, उससे बड़े भाइयों जैसा व्यवहार करें, लेकिन से यह व्यवहार उस समय मिला जब साहित्य संसार उसे बहुत बड़ा कहानीकार स्वीकार कर चुका था.
अच्छा, अब उसकी कहानीकारी के विषय में सुनिए, यह अव्वल दर्जे का फ्रॉड है, पहली कहानी उसने “तमाशा” शीर्षक के अंतर्गत लिखी जो जलियाँवाला बाग की खूनी दुर्घटना के विषय में थी. यह उसने अपने नाम से छपवाई. यही कारण है कि वह पुलिस के चंगुल से बच गया.
इसके बाद उसके उर्वर मस्तिष्क में एक लहर पैदा हुई कि वह और अधिक शिक्षा प्राप्त करे. यहाँ यह कहना रूचिकर होगा कि उसने इंटर परीक्षा दोबारा फ़ेल होकर पास की थी, वह भी थर्ड डिवीजन में. और आपको यह सुनकर भी अचंभा होगा कि वह ऊर्दू के पर्चे में नाकाम रहा.
अब लोग कहते हैं वह उर्दू का बहुत बड़ा साहित्यकार है और मैं यह सुनकर हंसता हूँ, इसलिए कि उर्दू उसे अब भी नहीं आती. वह शब्दों के पीछे ऐसे भागता है जैसे कोई जाली शिकारी तितलियों के पीछे. वे उसके हाथ नहीं आतीं. यही कारण है कि उसके लिखने में सुंदर शब्दों की कमी है. वह लट्ठमार है लेकिन जितने लट्ठ उसकी गर्दन पर पड़े हैं उसने बड़ी खुशी से सहन किए हैं.
इसकी लट्टबाजी लोकोक्ति के अनुसार जाटों की लट्टबाजी नहीं है. वह बाज़ीगर और फकैत है. वह एक ऐसा आदमी है जो साफ और सीधी सड़क पर नहीं चलता बल्कि तने हुए रस्से पर चलता है.
लोग समझते हैं, अब गिरा, अब गिरा, लेकिन वह कम्बख्त आज तक कभी नहीं गिरा-शायद गिर जाए औंधे मुँह कि फिर न उठे. लेकिन मैं जानता हूँ कि मरते वक्त वह लोगों से कहेगा कि मैं इसीलिए गिरा था कि पतन की निराशा समाप्त हो जाए.
फ़्रॉड
मैं इसके पूर्व कह चुका हूँ कि मंटो अव्वल दर्जे का फ्रॉड है.
इसका अन्य प्रमाण यह है कि वह, कहा जाता है कि कहानी नहीं सोचता, स्वयं कहानी उसे सोचती है- यह भी एक फ्रॉड है.
यद्यपि मैं जानता हूँ कि जब उसे कहानी लिखनी होती है तो उसकी वही हालत होती है जैसे किसी मुर्गी को अंडा देना होता है. लेकिन वह अंडा छुपकर नहीं देती, सबके सामने देती है. उसके यार दोस्त बैठे होते हैं, उसकी तीन बच्चियाँ शोर मचा रही होती है और वह अपनी विशेष कुर्सी पर उकड़ू बैठा अंडे देता जाता है जो बाद में चूं-चूं करते अफ़साने बन जाते हैं. उसकी पत्नी उससे बहुत नाराज़ है. वह उससे अक्सर कहा करती है कि तुम कहानी लिखना छोड़ दो और कोई दुकान खोलो लो, लेकिन मंटो के मस्तिष्क में जो दुकान खुली है, उसमें मनियारी के सामान से भी अधिक सामान मौजूद है. इसलिए वह सोचा करता है कि वह कभी कोई स्टोरेज अर्थात् शीत घर न बन जाए जहाँ उसके तमाम विचार और भावनाएं जम जाएँ.
मैं यह लेख लिख रहा हूँ और मुझे डर है कि मंटो मुझसे नाराज़ हो जाएगा. उसकी हर चीज़ सहन की जा सकती है लेकिन नाराज़गी नहीं की जा सकती. नाराज़गी होने पर वह शैतान बन जाता है, लेकिन केवल कुछ मिनटों के लिए और ये कुछ मिनट? अल्लाह की पनाह...
कहानी लिखने के विषय में वह नखरे जरूर दिखाता है लेकिन मैं जानता हूँ, इसलिए कि उसका हमजाद हूँ कि वह फ्रॉड कर रहा है. उसने एक बार स्वयं लिखा था कि उसकी जेब में अनगिनत कहानियाँ पड़ी होती है. वास्तविकता इससे उलटी है.
जब उसे कहानी लिखनी होगी तो वह रात को सोचेगा. उसकी समझ में कुछ नहीं आएगा. सुबह पाँच बजे उठेगा और अखबारों से किसी कहानी का रस चूसने का ख्याल करेगा, लेकिन उसे नाकामी होगी. फिर वह गुसलखाने में जाएगा. वहाँ वह अपने शोर भरे सिर को ठंडा करने को कोशिश करेगा कि वह सोचने के योग्य हो सके, लेकिन नाकाम रहेगा. फिर झुंझलाकर अपनी पत्नी से बेकार का झगड़ा शुरु कर देगा. वहाँ से भी नाकामी होगी तो पान लेने चला जाएगा. पान उसकी मेज़ पर पड़ा रहेगा, लेकिन कहानी का कथानक उसकी समझ में फिर नहीं आएगा.
अंत में वह प्रतिकारस्वरूप कलम या पेंसिल हाथ में लेगा. “786” लिखकर जो पहला वाक्य उसके मस्तिष्क में आएगा उसकी कहानी का श्रीगणेश कर देगा. “बाबू गोपीनाथ”, “टोबा टेकसिंह”, “हतक”, “मम्मी”, “मोजेल”- ये सब कहानियाँ उसने इसी फ्रॉड तरीके से लिखी है.
यह अजीब बात है कि लोग उसे बड़ा विधर्मी अश्लील व्यक्ति समझते हैं और मेरा भी ख़्याल है कि वह किसी हद तक इस कोटि में आता है. इसलिए प्रायः वह बड़े गंदे विषयों पर कलम उठाता है और ऐसे शब्द अपनी रचना में प्रयोग करता है जिन पर आपत्ति की गुंजाइश भी हो सकती है. लेकिन मैं जानता हूँ कि जब भी उसने कोई लेख लिखा, पहले पृष्ठ से शीर्ष पर 786 अवश्य मिला. जिसका मतलब है, “बिस्मिल्ला” और यह व्यक्ति जो खुदा को न मानने वाला नज़र आता है, कागज पर मोमिन बन जाता है. परन्तु वह कागज़ी मंटो है. जिसे आप कागज़ी बादाम की तरह केवल अंगुलियों से तोड़ सकते हैं, अन्यथा वह लोहे के हथोड़ो से भी टूटने वाला आदमी नहीं.
विश्वासघाती
अब मैं मंटो के व्यक्तित्व की ओर आता हूँ जो कुछ शब्दों में वर्णन कर देता हूँ. वह चोर है, झूठा है, विश्वासघातक है और भीड़ इकट्ठी करने वाला है.
उसने प्रायः अपनी पत्नी की ग़फ़लत से लाभ उठाते हुए कई-कई सौ रुपए उड़ाए हैं. इधर आठ सौ लाकर दिए और चोर आँख से देखता रहा कि उसकी पत्नी ने कहाँ रखे हैं और दूसरे दिन उनमें से एक हरा नोट गायब कर दिया और उस बेचारी को जब अपने नुकसान का पता लगा तो उसने नौकरों को डाँटना-डपटना शुरू कर दिया.
यूँ तो मंटो के विषय में मशहूर है कि वह साफ़-साफ़ कहने वाला है, लेकिन मैं इससे सहमत होने के लिए तैयार नहीं. वह अव्वल दर्जे का झूठा है. शुरू-शुरू में उसका झूठ उसके घर चला जाता था इसलिए कि उसमें मंटो का एक विशेष टच होता था, लेकिन बाद में उसकी पत्नी को पता चल गया कि अब तक मुझे विशेष बात के विषय में जो कुछ कहा जाता था, झूठा था. मंटो झूठ ख़ूब खुलकर बोलता है, लेकिन उसके घर वाले मुसीबत हैं कि अब यह समझने लगे हैं कि उसकी हर बात झूठी है. उस तिल की तरह जो किसी औरत ने अपने गाल पर सुरमे से बना रखा है.
वह अनपढ़ है- इस दृष्टि से कि उसने कभी मार्क्स का अध्ययन नहीं किया. फ्रायड की कोई पुस्तक आज तक उसकी दृष्टि से नहीं गुजरी. हीगल का वह केवल नाम ही जानता है. हैबल व एमिस को वह नाम मात्र से जानता है. लेकिन मज़े की बात यह है कि लोग मेरा मतलब है कि आलोचना यह कहते हैं कि तमाम चिंतकों से प्रभावित है. जहाँ तक मैं जानता हूँ मंटो किसी दूसरे के विचारों से प्रभावित है. वह समझता है कि समझाने वाले सब चुगद हैं. दुनिया को समझाना नहीं चाहिए, उसको स्वयं समझना चाहिए.
स्वयं को समझा-समझाकर वह एक ऐसी समझ बन गया है जो बुद्धि और समझ से परे है. कदाचित् वह ऐसी उटपटाँग बातें करता है कि मुझे हँसी आती है.
मैं आपको पूरे विश्वास के साथ कहता हूँ कि मंटो, जिस पर अश्लील लेख के विषय में कई मुकदमे चल चुके हैं बहुत शील पसंद है. लेकिन मैं यह भी कहे बिना नहीं रह सकता कि वह एक ऐसा पायदान है, जो स्वयं को झाड़ता फटकता रहता है.




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